Wednesday 28 November 2012

राजपथ की खोज

आचार्य तुलसी

चुनाव में किस प्रकार के व्यक्ति चुनकर आएं, यह जनता के निर्णय पर ही निर्भर करता है.
आज यथा राजा तथा प्रजाकी उक्ति अपने में उतनी अर्थवान नहीं रह गई, जितनी वह एकतंत्रीय राज्य-व्यवस्था में थी. जनता के प्रतिनिधियों को ही आज राज्य संचालन करना होता है और वे प्रतिनिधि कौन हों, इसका निर्णय भी जनता को ही करना होता है. इन स्थितियों में जैसी प्रजा होगी वैसा ही राजा (नेता) होगा. 

जनता यदि गलत एवं भ्रष्ट व्यक्तियों को संसद में चुनकर भेजती हो तो स्वच्छ प्रशासन की आशा करना व्यर्थ है. फिर नेताओं को कोसना भी अपने में कोई मायने नहीं रखता. इसलिए जनता को इस दिशा में प्रबुद्ध होना जरूरी हैं.
जो जनता अपने बेटों को चंद चांदी के टुकड़ों में बेच देती हो, संप्रदाय या जाति के उन्माद में योग्य-अयोग्य की पहचान खो देती हो, वह जनता योग्य उम्मीदवार को संसद में कैसे भेज पाएगी? लोकतंत्र की नींव ही जनता के मतों पर टिकी होती है. वह मत ही यदि भ्रष्ट हो जाता है तो प्रशासन तो भ्रष्ट होगा ही. 

आज जो राजनीति में भ्रष्टाचार पनप रहा है, उसके पीछे प्रमुख कारण चुनावों में फैल रही भ्रष्टता ही है. अत: वोट की स्वच्छता पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है. इसकी संपूर्ण जिम्मेदारी जनता की है. कोई भी राजनीतिक दल अपने मतदाताओं को चाहे किसी भी गलत उपाय से आकृष्ट करना चाहे, यदि देश की जनता उसमें सहभागी नहीं बनती है तो भ्रष्टाचार आगे नहीं फैल पाएगा, वहीं पर निरुद्ध हो जाएगा.
जनता के सहकार से ही भ्रष्टाचार आगे फैलता है. योग्य उम्मीदवारों को छोड़कर गलत एवं भ्रष्ट लोगों के चुनाव में प्रमुख कारण व्यक्ति का अपना स्वार्थ होता है.  विघटन की ओर बढ़ रहे राष्ट्र की इस स्थिति पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना जरूरी है.
आज स्थिति यह है कि जाति प्रमुख है, राष्ट्र गौण है. संप्रदाय प्रमुक है, राष्ट्र उपेक्षित है. भाषा और प्रांत प्रमुख हैं, राष्ट्र विमुख है. परिणामत: दिन-प्रतिदिन राष्ट्र दुर्बल होता जा रहा है. यह स्थिति क्यों है? केवल इसलिए कि राष्ट्र की भावात्मक एकता टूट रही है.

राजपथ की खोजसे साभार

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