संतुष्टो येन केनश्चित् यानी जिस तरह से भी रहना पड़े संतोष के साथ रहें। हर कष्ट, कमी या बुरे हालात में संतुष्ट रहें।
निचोड़ है कि संतोष ही सबसे बड़ा सुख है व असंतोष गहरा दु:ख। चूंकि दूसरों की तरक्की या सुख भी इंसान के दु:ख, असंतोष या ईर्ष्या की वजह होते हैं। इसलिए ऐसी प्रवृत्ति और स्वभाव से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा उपाय संतोष ही है। संतोषी स्वभाव बनाने के लिए भी यह अभ्यास जरूरी है कि दूसरों की खुशियो और सुखों पर प्रसन्न हों। साथ ही किसी के दु:ख या अभाव में सहानुभूति व करुणा के भाव रख विचार करना भी स्वयं को मिले सुखों का महत्व महसूस कराता है और ईश्वर की कृपा भी।
संतोष और ईश्वर कृपा का यह भाव ही सुखी व प्रसन्न जीवन के साथ लंबी उम्र का कारण बनता है।
इंसान को ऐसी ही परेशानियो से दूर रख लंबे और सुखी जीवन के लिए गीता में संतोष करने से जुड़े बहुत
निचोड़ है कि संतोष ही सबसे बड़ा सुख है व असंतोष गहरा दु:ख। चूंकि दूसरों की तरक्की या सुख भी इंसान के दु:ख, असंतोष या ईर्ष्या की वजह होते हैं। इसलिए ऐसी प्रवृत्ति और स्वभाव से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा उपाय संतोष ही है। संतोषी स्वभाव बनाने के लिए भी यह अभ्यास जरूरी है कि दूसरों की खुशियो और सुखों पर प्रसन्न हों। साथ ही किसी के दु:ख या अभाव में सहानुभूति व करुणा के भाव रख विचार करना भी स्वयं को मिले सुखों का महत्व महसूस कराता है और ईश्वर की कृपा भी।
संतोष और ईश्वर कृपा का यह भाव ही सुखी व प्रसन्न जीवन के साथ लंबी उम्र का कारण बनता है।
इंसान को ऐसी ही परेशानियो से दूर रख लंबे और सुखी जीवन के लिए गीता में संतोष करने से जुड़े बहुत
ही अच्छे और सरल सूत्र बताए गए हैं, जो छोटे-बड़े हर इंसान को दु:खों से दूरी बनाने में मदद करते हैं। इन सूत्रों को विचारों में उतारकर व्यवहार में लाया जाय तो इंसान हमेशा सुखी रह सकता है। धर्मगंथ श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है
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