Saturday 1 December 2012

आत्मा का आधार है शरीर :-आचार्य तुलसी


बाती जलती है और प्रकाश करती है पर उसे जलने के लिए दीपक की अपेक्षा रहती है.
दीपक न हो तो बाती टिके कहां? दीपक का प्रकाश के साथ कोई संबंध नहीं है. दीपक मिट्टी या धातु का पात्र है और प्रकाश है एक पौद्गलिक शक्ति. सामान्यत: दोनों में कोई संबंध नहीं है; फिर भी प्रकाश को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए आधार चाहिए. प्रकाश का आधार है- बाती, घी या तेल और उनका आधार दीपक.

संसारी आत्मा को भी अपना अस्तित्व टिकाए रखने के लिए इंद्रियों और शरीर का आधार चाहिए. इंद्रियों के माध्यम से आत्मा देखती है, सुनती है, सूंघती है, चखती है और शीत, ताप का अनुभव करती है. शरीर आत्मा की अभिव्यक्ति का साधन है. शरीर न हो तो आत्मा अव्यक्त रहती है, इसलिए शरीर को भी समझना आवश्यक है.

शरीर के तीन प्रकार है- स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मतम. औदारिक शरीर स्थूल है. यह मांस, रुधिर, हड्डियां आदि स्थूल पदार्थों से बना हुआ है. आहारक और वैक्रिय शरीर भी स्थूल माने गए हैं क्योंकि इनके निर्माण में भी स्थूल पुद्गलों का उपयोग होता है. तैजस शरीर सूक्ष्म होता है. इसका काम है- पाचन और ताप. कार्मण शरीर सूक्ष्मतम है. यह चतुस्पर्शी कर्म वर्गणाओं से निष्पन्न होता है, इसलिए पौद्गलिक होने पर भी चर्मचक्षुओं द्वारा अगम्य है.

धार्मिक लोगों ने शरीर को क्षणभंगुर ही नहीं, निस्सार और अशुचि बताया है. उन्होंने शरीर को जी भरकर कोसा है, पर यह एकांगी दृष्टिकोण है. शरीर हेय है, किसी एक दृष्टि से. इसके साथ दूसरी दृष्टि जब तक नहीं जुड़ेगी, शरीर की अच्छाइयों की ओर ध्यान नहीं जाएगा. माना कि शरीर नाशवान है, त्याज्य है. पर इसके द्वारा कितनी शक्तियां प्राप्त हो सकती हैं, यह तथ्य भी तो उपेक्षणीय नहीं है.

जो व्यक्ति इस शरीर में कमियां ही कमियां देखते हैं, वे इससे लाभान्वित नहीं हो सकते. इसमें अंतर्निहित शक्तियों को देखने और समझने वाले ही शरीर को उपयोगी बना सकते हैं.

‘खोए सो पाए’ से       

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